मुखिया का बेटा कैसे बन गया कुख्यात गैंगस्टर, और फिर अस्पताल में हत्या तक की पूरी यात्रा: बक्सर के चंदन मिश्रा की पूरी कहानी...
हाल ही में बिहार के पटना में पारस हॉस्पिटल में हुए शूटआउट जिसमें चंदन मिश्रा नाम के शख्स की मौके पर ही मौत हो गई, विदित हो कि पटना के बड़े अस्पतालों में से एक पारस अस्पताल का कमरा नंबर 209 गुरुवार 17 जुलाई 2025 कि सुबह तक़रीबन 7.15 बजे गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. पांच अपराधी पिस्टल लहराते हुए इस कमरे में घुसे और बहुत आराम से चंदन मिश्रा नाम के शख्स को गोली मारकर चलते बने. लेकिन जिस चंदन मिश्रा की हम बात कर रहे है आखिर वो कौन है।
आइए जानते है पूरी स्टोरी
चंदन मिश्रा बिहार के बक्सर जिले, औद्योगिक थाना क्षेत्र, सोनवर्षा (सोनबरसा) गांव का निवासी था। वह अपने पिता श्री श्रीकांत मिश्रा उर्फ (मंटू मिश्रा) का इकलौता बेटा था। उनके पिता दो बार गांव के मुखिया और एक बार पैक्स अध्यक्ष भी रहे।
परिवार का प्रभावशाली होने के बावजूद चंदन बचपन में ही अपराध की राह पर चल पड़ा। दस‑बीस वर्ष की उम्र में ही उसने जुर्म का रास्ता अपना लिया।
किशोर अवस्था में ही उसने अपने पिता की लाइसेंसी रिवॉल्वर से गांव के युवक भीम मिश्रा को गोली मार हत्या कर दी। यह उसकी पहली घटना थी। उसे पकड़ा गया और बाल सुधार गृह भेजा गया।
जेल से बाहर आने के बाद उसकी मुलाकात शेरू सिंह से हुई मुलाकात मित्रता में बदल गई और 2011 में दोनों ने मिलकर अपराध‑गैंग खड़ा किया।
फिर 2011 से 2016 के बीच चंदन‑शेरू गैंग ने दलालियों, रंगदारी और हत्या जैसी कई संगीन घटनाओं को अंजाम दिया। उनमें:
राजेंद्र केसरी, चूना कारोबारी की हत्या (रंगदारी न देने पर)
भरत राय (26 जुलाई 2011), शिवजी खरवार की हत्या (पूर्व प्रमुख पति) भी शामिल है।
आरा व बक्सर में कुल लगभग 25 आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए। एक में उसे आजिवन कारावास की सजा मिल चुकी थी, कुछ मामलों में चल रहा था ट्रायल।
पुलिस को पकड़ने में मुश्किल हुई; दोनों को पकड़ने नेपाल और कोलकाता तक ट्रैक किया गया। अंततः दोनों की गिरफ्तारी कोलकाता से हुई और उन्हें जेल भेजा गया।
चलिए अब जानते है कि ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से दोस्त शेरू ने ही चंदन की गोलियों से भून कर हत्या कर दी,
शेरू और चंदन की दोस्ती जेल में टूट गई। मुख्य कारण थे पैसे का झगड़ा, पोर्टल और परिवार संबंधों में शक, और सोशल मीडिया से जुड़ी प्रतिस्पर्धा।
2016 के बाद दोनों अलग गैंग हो गए; चंदन का प्रभाव कम होता गया और वह पीछे हट गया। वहीं शेरू का दबदबा बढ़ने लगा।
3 जुलाई 2025 को पाइल्स के इलाज के लिए चंदन को जेल से 15 दिनों की पैरोल मिली। उसने पारस हॉस्पिटल, पटना में भर्ती होकर ऑपरेशन करवाया। उसे 18 जुलाई 2025 जेल वापस लौटना था । लेकिन 17 जुलाई को उसे अस्पताल के कमरे में शूटरों ने घात लगाकर गोली मार दी।
घटना सुनियोजित थी: पांच शूटरों ने कुल 28 गोलियां चलाई, प्रत्येक को ५ लाख रुपये इनाम मिलने थे। घटना से जुड़ा मास्टरमाइंड 'तौसीफ उर्फ बादशाह' था, जिसे निशु खान उर्फ भाईजान ने योजनाबद्ध तरीके से शूटआउट करवाया।
इस घटना ने पूरे बिहार के प्रशासन व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया कि कैसे 5 लोग अस्पताल के आते है और वो भी हथियारों से लैस हो के ओर एक आदमी जो कि पुलिस की नजरबंदी में अस्पताल के इलाज के लिए आया था उसकी हत्या कर के बंदूक लहराते हुए वाला से निकल जाते है,
पुलिस ने CCTV, व्हाट्सएप और मैसेंजर चैट, हॉस्टल / गेस्टहाउस लॉग सहित कई पहलुओं की जानकारी जुटाई।तौसीफ को कोलकाता (न्यू टाउन) से गिरफ्तार किया गया। साथ में अन्य शूटरों की पहचान हुई जिसमें सोनू, आकिब मलिक, मुस्तकीम उर्फ कालू, बलवंत सिंह उर्फ भिंडी आदि शामिल थे।
पुलिस एनकाउंटर के दौरान कुछ आरोपियों या उनके सहयोगियों को पकड़ा गया; एक ने आरा में मुठभेड़ में घायल भी हुआ और उसे पटना रेफर किया गया।
पुलिस का मानना है कि एक और पहलू: हत्या की मूल वजह हो सकती है बक्सर की डेढ़ करोड़ रूपये की संपत्ति, जिसे लेकर विवाद चल रहा था। हो सकता हो कि शेरू ने उस संपति पे अपना दबदबा बनाने के लिए चंदन को मरवाया होगा, लेकिन अभी पुलिस इन्वेस्टिगेशन चल रही है आगे अदालत का फैसला क्या होगा बताएंगे आपको अगली कहानी में।
चंदन मिश्रा की कहानी उस पूरी यात्रा की व्याख्या करती है जो एक प्रभावशाली परिवारीक पृष्ठभूमि से अपराध की दुनिया की उथल-पुथल तक गई, अंततः उसकी पारस अस्पताल, पटना में हुई खूनी हत्या पर समाप्त हुई।

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